Saturday 19 July 2014

इसी लिए तो मेरा भारत महान

विद्या में भारत सोने की चिड़िया है

                                                           संस्कार उसका आभूषण है|
सत्कर्म ही उसकी पूजा है|
                                                                 
 दया ही उसका दान है|
मनुर्भव अर्थात मनुष्यता ही उसका धर्म है| 

                                                               संतोष ही उसकी पहचान है|
बुद्धि ही उसका सबसे बड़ा बल है| 
 कर्तव्यों एवं संकल्पो का निर्वहन करना उसकी सेवा है| 

माता - पिता ही उसके देवता है| परमपिता परमेश्वर 

 "  श्री राम  "                               
                            चन्द्र उसके भगवान है| 

चारो  नदिया  ,  चारो  वेद  |
चारो धाम में रहते प्राण है  |
                                             इसी लिए तो मेरा भारत महान  || 
                                             इसी लिए तो मेरा भारत महान  || 
जिसने बात  समझ लिया है बन्धु !
                उसको                    
         " जय जय श्री राम "                  
 


                                                                  भारतीय ज्योतिष संस्थान                                                                     आचार्य विमल त्रिपाठी 

Saturday 31 May 2014

मन्दिर में भगवान के दर्शन करने से पूर्व रखे विशेष ध्यान :



मन्दिर में देव दर्शन करने के लिए पुराणोक्त बत्तीस बातो का सदा ध्यान रखना चाहिए| अन्यथा आपके  जनित भूल से सह देवता कुपित हो ,अनिष्ट कर देते है|   

१ = भगवान के मंदिर में जूते - मोजा - चप्पल पहन कर या घोड़े बैल आदि जीव की सवारी करके जाना
२ =जन्माष्टमी, प्रतिष्ठादिवस अन्य भगवत संबन्धी उत्सवों भण्डारों को न करना और ना जाना
३ = भगवान के सन्मुख शीश झुकाये बिना नेत्र नेत्र मिला कर उन्हें प्रणाम करना
४ =अशुद्ध अवस्था में भगवान के मंदिर में प्रवेश व दर्शन करना
५ = एक ही हाथ से भगवान को प्रणाम करना
६ = भगवान के सन्मुख खड़े हो कर एक ही स्थान पर परिक्रमा करना
७ = भगवान के सन्मुख पैर फैला कर बैठ जाना
८ = भगवान के सन्मुख देवालय के चौखट पर पैर रख कर प्रवेश करना
९  = भगवान के सन्मुख निद्रा शयन करना
१०= भगवान के सन्मुख देवालय में भोजन करना जूठन गिरना
११= भगवान के सन्मुख या देवालय में झूठ बोलना
१२= भगवान के सन्मुख देवालय में उच्च स्वर में बोलना
१३= भगवान के सन्मुख देवालय में परस्पर मिथ्या भाषण करते जाना
१४=भगवान  के सन्मुख जोर जोर से रोना ,चिल्लाना किसी कोषना
१५= भगवान के सन्मुख झगड़ा गाली  गलौज करना
१६= भगवान के सन्मुख किसी को पीड़ा देना अपमानित करना
१७= भगवान के सन्मुख किसी का अनुग्रह ना करना
१८=भगवान  के सन्मुख या देवालय में स्त्री से राग पूर्वक बाते करना
१९= भगवान के सन्मुख कम्बल ओढ़ना
२०= भगवान के सन्मुख दुसरे की निन्दा करना
२१= भगवान के सन्मुख दुसरे से प्रार्थना या चपलूसी करना
२२= भगवान के सन्मुख अश्लील बाते कहना
२३= भगवान के सन्मुख अधोवायु का त्याग करना
२४= भगवान के सन्मुख समर्थवान हो कर भी सामान्य उपचार से पूजन करना
२५= भगवान के सन्मुख भोग लगाये बिना ही ग्रहण करना
२६= भगवान के सन्मुख जिस ऋतू में जो फल आया हो पहले न चढ़ाना
२७= भगवान के सन्मुख बचे हुए उपयोग किये शाक- फल चढ़ाना
२८= भगवान के सन्मुख पीठ करके बैठना
२९= भगवान के सन्मुख गुरु वंदना किये बिना पूजन करना
३०= भगवान के सन्मुख गुरु का अपमान या परिहास करना
३१= भगवान के सन्मुख अन्य देवताओ या देवालयों की तुलनात्मक विवेचना करना
३२= भगवान के सन्मुख अपराध करके सीधे अपने को अपराध से मुक्त समझना
                     
                                                             ( पद्म पुराण ,पाताल ७६/३६-४४)
                                                                    आचार्य  विमल  त्रिपाठी 

Tuesday 11 March 2014

हमे चार ही यजमान कि कामना है जो चार वेद के सामान देदीप्यवान हो|


हमे अट्ठारह भगत कि कामना है जो पुराणों सा स्तवन रखते हो|

हमे तेरह ब्राह्मण कि कामना है  जो उपनिषद के वेत्ता हो| 

हमे सत्य सनातन धर्म को सुव्यवस्थित करने से कोई भी आसुरीय शक्ति नहीं रोक सकती|

                                                                  "जय श्री राम " 

                                                             आचार्य विमल त्रिपाठी 

अपनी बात ...........................

"फिर ब्रह्म तत्व कि प्राप्ति से कोई भी देवासुर तुम्हे नहीं वंचित कर सकता  परमात्म सत्ता ही ब्रह्म तत्व है" 

Monday 10 March 2014

आज का सुविचार अहंकार भगवान का भोजन है


                    त्यागना है  तो 

              अहंकार का त्याग करो !


एक बार अर्जुन को अहंकार हो गया । अहंकार वो भी अपने बाहुबल का और वो भगवान कि सत्ता को भूल गया क्योकि स्वाभाविक है "सत्ता पाहि......." अर्थात सत्ता को प्राप्त कर लेने के पश्चात कौन नहीं मदमस्त हो जाता है उसके समस्त इच्छाओ कि पूर्ति थोड़े ही परिश्रम से पूर्ण हो जाती है| यही कारण है वो परमात्म सत्ता को भूल बिसर -जाता है और सभी में अपनी सत्ता को जान कर जीवन व्यर्थ गवाने लग जाता है| भगवान अपने भक्त का एक क्षण भी व्यर्थ नहीं जाने देना चाहते है|

यही कारण था भगवान अर्जुन के अहंकार को उतने में ही समाप्त कर देते है इससे पहले कि अर्जुन पतन के मार्ग पर चल पड़ते|

"कृष्ण कहते है , अर्जुन ! सम्भल जा , सामने रवि का नन्दन खड़ा है|बाण धारी बहुत हो बड़े तुम किन्तु बाण विद्या में तुमसे बड़ा है"


भगवान अर्जुन के अहंकार को समाप्त करने हेतु बोले ………………

"हे पार्थ ! निःसंदेह आप धनुर विद्या में पारंगत है , यथार्थ है कि तुम्हारे सोलहवे संस्कार के मार्ग दर्शक गुरु होने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुवा है "|

"हे पार्थ ! हे पार्थ निः संदेह तुम्हारी विजय कि अनुभूति हम प्रत्यक्ष देख रहे है, किन्तु उसमे आने वाले संदेह को भी देख पा रहे है"|

अतः "हे पार्थ ! जरा सम्भल कर वार करो , कही मेरा संदेह सत्य में न बदल जाए अर्थात अभी तुम्हे और त्याग कि आवश्यकता है ,क्योकि सन्मुख सूर्य देव कि शक्तियो को धारण किये हुए|

स्वयं भू -भूत भावन भगवान शिव के अंशावतार  "श्री राम जी के वंशज के तारण हार ,भगवान परशुराम जी के परम स्नेही पुत्र ,स्वरुप, एकमात्र शिष्य दान वीर राजा "कर्ण" युद्ध में अडा है|

अतः हे पार्थ ! "सर्व  व्यापक  सर्वत्र समाना .............

मेरे कहे वचन को ध्यान धर और अपने अहं भाव को त्याग कर युद्ध कर|

भगवान कि कही गयी गुरु वाणी को संज्ञान में लेने से अर्जुन को भगवान कि माया के दर्शन करने पड़े\

भगवान वाशुदेव ने अपनी माया को क्षण भर के लिए विराम दिया और अर्जुन ने बाण कि वर्षा करना आरम्भ किया तभी एक बाण तेजी से आया और अर्जुन के रथ को भूमि के ११ हजार योजन ले कर जा पहुचा तभी अर्जुन अपने वर्त्तमान में आ गये और भगवान कि स्तुति करने लगे .............
अर्जुन चिल्ला के बोले " हे प्रभु तस्मात्वमेव मम दीन बंधू ............
हे दीनानाथ ! मेरी रक्षा करो मेरी रक्षा करो …………………………।
करुण पुकार सुन कर भगवान कृष्ण कन्हैया रास रचैया अर्जुन के रथ को उठा कर पृथ्वी पर पुनः स्थापित किये और बोले अर्जुन हमारी कही बात को निरर्थक ना जानो अन्यथा ब्रह्म भी तेरा सहयोग छोड़ देगा|

क्षण कि ऊर्जा कम होने से तुम्हारी ये गति हुयी और यदि ब्रह्म रुष्ट हो जाए तो तेरी गति उसके भी हाथ में नहीं होगी फिर तो काल ही निर्णय कर सकता है|

तेरे रथ को हनुमान जी के आशीर्वाद ने रोक दिया ऊपर अपनी ध्वजा को देखो शिव जी कि कृपा तुझे प्राप्त है तभी तेरे द्वारा मारे गए बाणों से कर्ण का संघार निश्चित है|

परशुराम तेरे भी गुरु हुए है अतः उनका ध्यान कर और बाण चला तेरी विजय होगी ।
इस प्रकार अभिमान को त्याग कर भगवान परशुराम का ध्यान करके अर्जुन ने कर्ण को पराजित किया|

अर्जुन ने उसी क्षण अहंकार का त्याग कर देने का संकल्प कर लेता है|

बंधुवो ! अहंकार को साथ ले कर, उसे  अपना मान कर भगवान कि कृपा कदापि नहीं प्राप्त की जा सकती है| 
                                           

                                                             ज्योतिषाचार्य पण्डित विमल त्रिपाठी 
                                                               नर्वदेश्वर महादेव साईं धाम आश्रम 
                                                                                 लखनऊ  
                                                                            9335710144

Monday 17 February 2014

धर्म और राज नीति दोनों एक होगे तभी देश में सुख शान्ति सम्भव है|

धर्म और राज नीति दोनों एक होगे तभी देश में सुख शान्ति सम्भव है|

जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी ।
सो नृपु अवसि नरक अधिकारी ॥ 

लोकतांत्रिक साम्राज्य में नागरिको (प्रजा) का शासक राजा कहलाता है| राजाओ पर शासन करने वाला वीतराग संत- महात्मा होते है, धर्म और धर्माचार्यो पर राजा का शासन नहीं चलता है| उन पर शासन करना शासक का घोर अन्याय है राजा पर यदि संतो धर्माचार्यो का शासन नहीं होगा तो राजा उच्छश्रंखल का  हो जायेगा और निर्बुद्धि राजा ही धर्म और धर्माचार्यो पर शासन करता है उन पर अपनी  आज्ञा चलाता है क्योकि वह शासक यह समझता है कि बुद्धि मेरे ही पास है! दुसरा भी कोई बुद्धिमान हो ये बात उसे जचती नहीं है|
पहले हमारे भारत में राजा महाराजा लोग राज्य करते थे, किन्तु सलाह ऋषि मुनियो से लिया करते थे| कारण कि अच्छी सलाह वीतराग पुरुषो से ही मिल सकती है| भोगी पुरुषो से नहीं| इसलिए कानून बनाने का अधिकार वीतराग पुरुषो को ही है| जिसका कठोरता पूर्वक पालन करवाना शासक का धर्म है\ आज यही कारण है हमारे इन्ही सिद्धांतो पर शोध करके, पाश्चात्य सभ्यता के राजा निरंतर अनुशासन में रहते हए विकास करते जा रहे है| राजा दशरथ एवं भगवान राम चन्द्र सरकार भी प्रत्येक कार्यो में वीतराग वसिष्ठ जी से सम्मति लेते थे ,और उनकी आज्ञा से ही सब काम किया करते थे| परन्तु आजकल के शासक वीतराग संतो महात्माओ का अपमान, तिरस्कार करते है| जो शासक खुद वोटो के लोभ में, स्वार्थ में लिप्त है उस भ्रष्ट शासक द्वारा  बनाये गए कानून देश के हित और नागरिक के विकास के कैसे ठीक होंगे ? धर्म के बिना नीति विधवा है,और और नीति के बिना धर्म विधुर है| धर्म और राजनीति - दोनों साथ साथ होने चाहिए| तभी "रामराज्य" कि कल्पना करना सार्थक होगा|
रामराज्य कि झाकी अश्वपति के वचनो से मिलती है.............
" न में स्तेनो जनपदे न कदर्यो न मधपः|
नाना हइटअग्निरनाविद्द्वान्न स्वैरी स्वैरिणि कुतः ॥ "
न कोई चोर हो, न कोई कृपण हो,न कोई मांश मदिरा पीने वाला हो,न कोई अविद्वान- अज्ञानी हो, न कोई परस्त्री गामी हो,तो वेश्याओ का कुलटा स्त्रियो का देश में क्या काम| सभी यज्ञ पूजन पाठ करने वाले हो|
जो वोटो के लिए आपस में झगड़ते है कपट करते है हिंसा करते और करवाते है| लोगो को रूपये के बल पर फुसलाते है डरा- धमका कर वोट लेते है| उनसे क्या आशा रक्खी जाय कि वो न्याय युक्त राज्य करेगे? नेता लोग वोट बटोरने के लिए तो खूब मोटर गाड़िया दौड़ाते है जनता का पैसा तेल में जला देते है लाखो करोडो रूपये खर्च करते है अपना और जनता का समय बर्बाद करते है,लोगो को जाती के नाम पर लड़ाते है जीत जाने के बार एक भी बार ये नहीं पूछने आते भाई आपको कोई तकलीफ तो नहीं? तुम्हारी सहायता से हम राजा के पद पर आसीन हो सके है मेरे भाई तुम्हारा जीवन कैसा चल रहा है ?
पहले राजा लोग शासन करते थे तो राज्य की संपत्ति अपनी नहीं प्रज़ा की मानकर परजा के हित में व्यय करते थे| जनता दरबार में राजा साछात्कार करते थे| उनकी समस्याओ को सुनते और उसका निपटारा तुरंत करवाते थे|
इस पर काली दास जी लिखते है .................
" परजानामेव भूत्यर्थं स ताभ्यो बलि मगृहीत ।
सहस्त्र गुण मुतस्त्र ष्टुमादत्ते हि रसं रविः  ॥
अब राजाओ में स्वार्थ आ गया परजा की सम्पत्ति  का स्वयं उपयोग करने लगे है| जनता के धन से सम्पत्ति से नेताओ के बच्चे अय्यासी करते फिरते देखे जाते है| झूठ बैमानी कपट के बल पर जीत कर आये भ्रष्ट नेता इस मानसिकता के है की किसी भाति कुर्सी मिल पायी है अब पांच वर्ष कोई चिंता नहीं जितना संग्रह कर सको कर लो आगे का कोई भरोसा नहीं देश चाहे दरिद्र ही क्यों ना हो जाए लोग आत्म हत्या ही क्यों ना कर ले ये नेता यह रणनीति बनाते है कि धन पशुवो से धन कैसे निकाला जाय फिर क्यों ना भूमि के खण्ड खण्ड करके  दुश्मन को बेच दिया जाय, जिस पर वे अत्याचारी कतलखाने खोल के देश की जनता को काट के बेचे, या  गाय  को| वर्तमान वोट प्रणाली में जिसकी संख्या अधिक हो वह जीत जाता है और राज्य करता है शासन करता है विचार  करो  मेरे भाई ! समाज में ज्ञानियो कि संख्या अधिक है, या मूर्खो कि, सज्ज्नों कि संख्या अधिक है, कि दुष्टो की ,इमानदारो कि संख्या अधिक है, या बेईमानो कि, अध्यापको कि संख्या है कि, विधार्थियो कि, जिनकी संख्या अधिक है ,वे ही वोट के बदले शासन करेगे, फिर देश कि दशा क्या होगी विचार करो| 

Thursday 19 December 2013


                                

                                      भारतीय ज्योतिष संस्थान 




सम्पुर्ण भू मण्डल में जन्म लेने वाला जातक अपने निज कर्मो के आधार पर निरंतर प्रगति करने का प्रयास करता रहता है नित्य जीवन में सुख समृधि स्वास्थ्य धन वैभव आनंद की कामना करता है किन्तु अथक परिश्रम करने के पश्चात भी अनेको प्रकार से कष्टों को भोगना ही पड़ता है इसका प्रमुख कारण दैवीय प्रकोप के साथ साथ स्वयम के द्वारा किये पूर्व जन्म के कृत्य भी है यही कारण है एक राजा के यहाँ जन्म होने पर भी पूर्व कृत्य के कारण कष्टों को तो भोगना ही पड़ता है वस्तुतः अपने लक्ष्य की प्राप्ति करने हेतु अनेको तंत्र - मन्त्र - यंत्र का सहारा लेना पड़ता है परन्तु निराशा ही हाथ आती है जिसके कारण ही अविश्वास उत्पन्न हो जाता है !
आप निराश न हो क्योकि सत्य मार्ग का ज्ञान न होने के कारण एवं अपूर्ण ज्योतिषीय परामर्श से ही आपको अविश्वास उत्पन्न हुआ है मेरा निज अनुभव कहता है की हमारे ज्योतिष संस्थान के सम्पर्क में आने पर आपके अविश्वास को समाप्त करके निदान अवश्य प्राप्त होगा
उदाहरण = डॉक्टर भी किसी बिमारी को बिना गहन अध्यन के ठीक कर पाने में असमर्थ ही होगा ! रोग की जाँच कर लेने के पश्चात सही उपचार कर पाना संभव हो पाता है ठीक उसी प्रकार जन्म कुण्डली के आधार पर जीवन में घटने वाले शुभ एवं अशुभ घटनाओं को ज्ञात कर उसका सही उपचार के माध्यम से असंभव लगने जैसे लक्ष्य की प्राप्ति सरलता से ही प्राप्त किया जा सका है
भृगु संघिता ज्योतिष ग्रन्थ की रचना मानव मात्र के कल्याणार्थ ही महारिषी भृगु जी द्वारा की गई थी जिसके आधार पर ही हमारे संस्थान के विद्वानों द्वारा भूत काल वर्तमान काल भविष्य काल की सही जानकारी प्रदान करके शुभा शुभ फलादेश का वर्णन कर सत्य मार्ग प्रसस्थ किया जाता है
हमारे संस्थान में शोध के पश्चात ही किसी भी जातक के फलादेश वर्णन द्वारा भूमि भवन ,आय व्यय , धन वैभव विवाह संतान सुख व्यवसाय रोग निर्णय कार्यछेत्र पदोन्नति हानि लाभ भाग्योदय ग्र्हरिस्ट बालारिस्ट बाधाओ एवं देवीय प्रकोप अरिस्ट आदि का वैदिक नियमो द्वारा ही उपचार किया जाता है
लोभ के वश अथवा धनाभिमान वश, विवश करके भृगु संघिता की प्राप्त जानकारी निष्फल ही होगा अतः ऐसे व्यक्तियों से विशेष अनुरोध है की अपना एवं संस्थान का समय नष्ट ना करिए जो की नियमो का उलंघन ही होगा
जन्म कुण्डली बनवाने हेतु अथवा भृगु संघिता द्वारा जानकारी हेतु जन्म समय ,जन्म तिथि ( माह तारीख एवं वर्ष सहित ) जन्म का स्थान माता पिता का नाम प्रमाण पत्र कार्यालय में अंकित करवाए उसी के आधार पर मिलान करवाने के पश्चात आपको सूचित किया जायगा हमारे संस्थान के कुशल एवं विद्वानों के द्वारा हस्त लिखित हिंदी अनुवाद करके फलादेश वर्णन आपको प्रदान कर दी जायेगी एनी ज्योत्षीय परामर्श हेतु आप स्वयम संपर्क कर सकते है
आचार्य विमल त्रिपाठी जी 

संपर्क सूत्र =   9335710144 
                     8869994556